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वीर सावरकर के 10 अनमोल विचार: Veer Savarkar Famous Quotes in Hindi

Posted on June 24, 2023

Veer Savarkar:-

वीर सावरकर को विनायक दामोदर सावरकर के नाम से भी जाना जाता है | वीर सावरकर एक स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ, वकील, लेखक, समाज सुधारक और हिंदुत्व दर्शन के सूत्रधार थे | उनका जन्म 28 मई 1883 को महाराष्ट्र में नासिक के पास भागपुर गांव में हुआ था | उनके तीन भाई-बहन थे | वीर सावरकर ने 12 साल की आयु में वीर उपनाम अर्जित किया था | जब उन्होंने एक समूह के खिलाफ छात्रों का नेतृत्व किया | जिन्होंने उनके गांव पर हमला किया था |

वीर सावरकर के जीवन से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य:-

  • 1901 में विनायक दामोदार सावरकर ने यमुनाबाई से शादी की, जो रामचंद्र त्रयंबर चिपलूनकर की बेटी थीं
  • 1923 में सावरकर ने हिंदुत्व शब्द की स्थापना की | कहा कि भारत केवल उन्हीं का है, जिनके पास यह पवित्र भूमि और उनकी पितृभूमि है |
  • वीर सावरकर ने अपनी पुस्तक हिंदुत्व में दो राष्ट्र सिद्धांत की स्थापना की | जिसमें हिंदुओं और मुसलमानों को दो अलग-अलग राष्ट्र कहा गया | 1937 में हिंदू महासभा ने इसे एक प्रस्ताव के रूप में पारित किया |
  • वीर सावरकर ने राष्ट्रध्वज तिरंगे के बीच में धर्म चक्र लगाने का सुझाव दिया था | जिसे राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने माना था |
  • सावरकर पहले राजनीतिक बंदी थे | जिन्हें फ्रांस पर बंदी बनाने के कारण हेग के इंटरनेशनल कोर्ट में मामला पहुंचा |
  • वे पहले क्रांतिकारी थे | जिन्होंने देश के विकास का चिंतन किया | बंदी जीवन समाप्त होते ही कुरीतियों के खिलाफ आंदोलन शुरू किया |
  • वीर सावरकर ने अंडमान के एकांत कारावास में जेल की दीवारों पर कील और कोयले के कविताएं लिखी थी | फिर उन्हें याद किया | जेल से छुटने के बाद पुनः कविताओंको लिखा |
  • सावरकर द्वारा लिखी गई पुस्तक द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस-1857 एक सनसनीखेज किताब रही |
  • वे विश्व के पहले ऐसे लेखक थे | जिनकी कृति 1857 का प्रथम स्वतंत्रता को 2 देशों ने प्रकाशन से पहले ही प्रतिबंधित कर दिया था |
  • उनकी स्नातक उपाधि को स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण अंग्रेज सरकार ने वापस ले लिया था |
  • वीर सावरकर पहले भारतीय राजनीतिज्ञ थे | जिन्होंने विदेशी वस्त्रों की होली जलाई थी |
  • वीर सावरकर ने इंग्लैंड के राजा के प्रति वफादारी की शपथ लेने से मना कर दिया था | जिस कारण उन्हें वकालत करने से रोक दिया गया था |

वीर सावरकर के अनमोल विचार:-

” समान शक्ति रखने वालों में ही मैत्री संभव है | “
” महान लक्ष्य के लिए किया गया कोई भी बलिदान व्यर्थ नहीं जाता है |”
“मनुष्य की सम्पूर्ण शक्ति का मूल उसके अहम की प्रतीति में ही विद्यमान है |”
“कष्ट ही तो वह चाक शक्ति है जो मनुष्य को कसौटी पर परखती है और उसे आगे बढ़ाती है |”
“अपने देश की, राष्ट्र की, समाज की स्वतन्त्रता हेतु प्रभु से की गई मूक प्रार्थना भी सबसे बड़ी अहिंसा की द्दोतक है |”
“उन्हें शिवाजी को मनाने का अधिकार है, जो शिवाजी की तरह अपनी मातृभूमि को आजाद कराने के लिए लड़ने के लिए तैयार हैं |”
“कर्तव्य की निष्ठा संकटों को झेलने में, दुख उठाने में और जीवन भर संघर्ष करने में ही समाविष्ट है | यश – अपयश तो मात्र योगायोग की बातें हैं |”
“अगर संसार को हिन्दू जाति का आदेश सुनना पड़े। तो ऐसी स्थिति उपस्थित होने पर उनका वह आदेश गीता और गौतम बुद्ध के आदेशों से भिन्न नहीं होगा “
“देशहित के लिए अन्य त्यागों के साथ जन-प्रियता का त्याग करना सबसे बड़ा और ऊँचा आदर्श है, क्योंकि ‘वर जनहित ध्येयं केवल न जनस्तुति:’ शास्त्रों में उपयुक्त ही कहा गया है “
“मन सृष्टि के विधाता द्वारा मानव-जाति को प्रदान किया गया एक ऐसा उपहार है, जो मनुष्य के परिवर्तनशील जीवन की स्थितियों के अनुसार स्वयं अपना रूप और आकार भी बदल लेता है।”
“वर्तमान परिस्थिति पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा इस तथ्य की चिंता किये बिना ही इतिहास लेखक को इतिहास लिखना चाहिए और समय की जानकारी को विशुद्ध और सत्य रूप में ही प्रस्तुत करना चाहिए।”
“अन्याय का जड़ से उन्मूलन कर सत्य और धर्म की स्थापना हेतु क्रांति, रक्तचाप प्रतिशोध आदि प्रकृतिप्रदत्त साधन ही हैं। अन्याय के परिणामस्वरूप होने वाली वेदना और उद्दण्डता ही तो इन साधनों की नियन्त्रण करती है।”
“परतंत्रता तथा दासता को प्रत्येक सद्धर्म ने सर्वदा धिक्कारा है। धर्म के उच्छेद और ईश्वर की इच्छा के खंडन को ही परतंत्रता कहते हैं। सभी परतन्त्रताओं से निकृष्टतम परतंत्रता है – राजनीतिक परतंत्रता। और यही नरक का द्वार है।
प्रतिशोध की भट्टी को तपाने के लिए विरोधों और अन्याय का ईंधन अपेक्षित है, तभी तो उसमें से सद्गुणों के कण चमकने लगेंगे। इसका मुख्य कारण है कि प्रत्येक वस्तु अपने विरोधी तत्व से रगड़ खाकर ही स्फुलित हो उठती है।”
“महान हिन्दू संस्कृति के भव्य मन्दिर को आज तक पुनीत रखा है संस्कृत ने। इसी भाषा में हमारा सम्पूर्ण ज्ञान, सर्वोत्तम तथ्य संग्रहित हैं। एक राष्ट्र, एक जाति और एक संस्कृति के आधार पर ही हम हिन्दुओं की एकता आश्रित और आधृत है।”
“यह जाति का अहंकार ब्राह्मणों से लेकर चाण्डाल तक सारे के सारे हिन्दू समाज की हड्डियों में प्रवेश कर उसे चूस रहा है और पूरा हिन्दू समाज इस जाति अहंकारगत द्वेष के कारण जाति कलह के यक्ष्मा की प्रबलता से जीर्ण शीर्ण हो गया है।”
“हिन्दू जाति की गृहस्थली है – भारत। जिसकी गोद में महापुरुष, अवतार, देवी-देवता और देव – जन खेले हैं। यही हमारी पितृभूमि और पुण्यभूमि है। यही हमारी कर्मभूमि है और इससे हमारी वंशगत और सांस्कृतिक आत्मीयता के सम्बन्ध जुड़े हैं।”
“हमारी पीढ़ी ऐसे समय में और ऐसे देश में पैदा हुई है कि प्रत्येक उदार एवं सच्चे हृदय के लिए यह बात आवश्यक हो गई है कि वह अपने लिए उस मार्ग का चयन करे जो आहों, सिसकियों और विरह के मध्य से गुजरता है। बस,यही मार्ग कर्म का मार्ग है।”
“इतिहास, समाज और राष्ट्र को पुष्ट करने वाला हमारा दैनिक व्यवहार ही हमारा धर्म है। धर्म की यह परिभाषा स्पष्ट करती है कि कोई भी मनुष्य धर्मातीत रह ही नहीं सकता। देश के इतिहास, समाज के प्रति विशुद्ध प्रेम एवं न्यायपूर्ण व्यवहार ही सच्चा धर्म है।”
“समय से पूर्व कोई मृत्यु को प्राप्त नहीं करता और जब समय आ जाता है तो कोई अर्थात कोई भी इससे बच नहीं सकता। हजारों लाखों बीमारी से ही मर जाते हैं। पर जो धर्म युद्ध में मृत्यु प्राप्त करते हैं, उनके लिए तो अनुपम सौभाग्य की बात है। ऐसे लोग तो पुण्यात्मा ही होते हैं।”
“हमारे देश और समाज के माथे पर एक कलंक है – अस्पृश्यता। हिन्दू समाज के, धर्म के, राष्ट्र के करोड़ों हिन्दू बन्धु इससे अभिशप्त हैं। जब तक हम ऐसे बनाए हुए हैं, तब तक हमारे शत्रु हमें परस्पर लड़वाकर, विभाजित करके सफल होते रहेंगे। इस घातक बुराई को हमें त्यागना ही होगा।“
“पतितों को ईश्वर के दर्शन उपलब्ध हों, क्योंकि ईश्वर पतित – पावन जो है। यही तो हमारे शास्त्रों का सार है। भगवददर्शन करने की अछूतों की माँग जिस व्यक्ति को बहुत बड़ी दिखाई देती हैं, वास्तव में वह व्यक्ति स्वयं अछूत है और पतित भी। भले ही उसे चारों वेद कंठस्थ क्यों न हों।”
“जिस राष्ट्र में शक्ति की पूजा नहीं, शक्ति का महत्व नहीं, उस राष्ट्र की प्रतिष्ठा कौड़ी कीमत की है। प्रतिष्ठा के न होने का प्रमाण है – पड़ोसी देश लंका ,पूर्वी पकिस्तान, पश्चिमी पकिस्तान में हिन्दुओं के साथ हो रहा दुर्व्यहार, जिसके लिए भारत सरकार मात्र विरोध – पत्र ही भेज सकती है, कर कुछ नहीं सकती।”
“ज्ञान प्राप्त होने पर किया गया कर्म सफलतादायक होता है। क्योंकि ज्ञानयुक्त कर्म ही समाज के लिए हितकारक है। ज्ञान प्राप्ति जितनी कठिन है, उससे अधिक कठिन है – उसे संभाल कर रखना। मनुष्य तब तक कोई भी ठोस पग नहीं उठा सकता यदि उसमें राजनीतिक, ऐतिहासिक,अर्थशास्त्रीय एवं शासनशास्त्रीय ज्ञान का अभाव हो।”
“हिन्दू धर्म कोई ताड़पत्र पर लिखित पोथी नहीं, जो ताड़पत्र के चटकते ही चूर चूर हो जायेगा। आज उत्पन्न होकर कल नष्ट हो जायेगा। यह कोई गोलमेज परिषद का प्रस्ताव भी नहीं, यह तो एक महान जाति का जीवन है। यह एक शब्द-भर नहीं, अपितु सम्पूर्ण इतिहास है। अधिक नहीं तो चालीस सहस्त्राब्दियों का इतिहास इसमें भरा हुआ है।”
“भारत की स्वतंत्रता का और सार्वभौम संघ – राज्य बनाने का श्रेय किसी एक गुट को नहीं, अपितु उसका श्रेय पिछली दो तीन पीढ़ी के सर्वदलीय देशभक्तों को सामूहिक रूप से है। स्वयं को असहयोगवादी और अहिंसक कहलाने वाले हजारों देशभक्तों ने इस स्वतंत्रता के लिए जो भारतव्यापी कार्य किया, उसके प्रति हम सबको कृतज्ञता व्यक्त करनी चाहिए।”
“देशभक्ति का अर्थ यह कदापि नहीं है कि आप उसकी हड्डियां भुनाते रहें। यदि क्रांतिकारियों को देशभक्ति की हड्डियां भुनाती होतीं तो वीर हुतात्मा धींगरा, कन्हैया कान्हेरे और भगत सिंह जैसे देशभक्त फांसी पर लटककर स्वर्ग की पुण्य भूमि में प्रवेश करने का साहस न करते। वे ‘ए’ क्लास की जेल में मक्खन, डबल रोटी और मौसम्बियों का सेवन कर, दो-दो माह की जेल यात्रा से लौट कर अपनी हड्डियां भुनाते दिखाई देते।”
“बहुसंख्यकों के लिए सुलभ और अनुकूल भाषा ही राष्ट्रभाषा के पद पर सुशोभित ही सकती है, अतः बहुसंख्यक हिन्दुओं की सांस्कृतिक भाषा हिन्दी ही सम्पूर्ण देश में समझी जा सकती है और यह राष्ट्रभाषा बन सकती है। इसे संस्कृतनिष्ठ बनाने के लिए उर्दू और अंग्रेजी के शब्दों को प्रयुक्त न किया जाये। दृढ़ता से डटे रहकर ही विदेशियों के भाषाई आक्रमण को विफल किया जा सकता है। इसकी पूर्ण सफलता के लिए हिन्दू संकल्प लें कि – संस्कृतनिष्ठ हिन्दी ही हमारी राष्ट्रभाषा तथा नागरी लिपि ही हमारी राष्ट्रलिपि है।”

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