Semiconductor (अर्धचालक) क्या है?
सेमीकंडक्टर आमतौर पर सिलिकॉन चिप्स होते हैं। इनका इस्तेमाल कंप्यूटर, सेलफोन, गैजेट्स, व्हीकल और माइक्रोवेव ओवन तक जैसे कई प्रोडक्ट्स में होता है। ये किसी प्रोडक्ट की कंट्रोलिंग और मेमोरी फंक्शन को ऑपरेट करते हैं। वर्क फ्रॉम होम और ऑनलाइन स्टडी की वजह से डेस्कटॉप, लैपटॉप, मोबाइल, टैबलेट की मांग बढ़ी। तो फिट रहने के लिए लोगों ने फिटनेस बैंड भी खरीदे। वहीं, गेमिंग डिवाइस के साथ दूसरे गैजेट्स भी जमकर बिके।
प्रकृति में कुछ पदार्थ ऐसे होते हैं जो कि विद्युत के सुचालक होते है, अर्थात बिजली के संपर्क में आने पर उनमें करंट लगता है. और कुछ ऐसे पदार्थ भी होते हैं जो कि विद्युत के कुचलाक होते हैं, ऐसे पदार्थ जब बिजली के संपर्क में आते हैं तो उन पर करंट नहीं लगता है.
पहली बार सेमीकंडक्टर का इस्तेमाल कब हुआ।
पहली बार सेमीकंडक्टर का इस्तेमाल 1901 में हुआ। इटली के भौतिकशास्त्री एलेसेंड्रो वोल्टा ने 1782 में पहली बार सेमीकंडक्टिंग शब्द का इस्तेमाल किया था। हालांकि अमेरिकी भौतिकशास्त्री माइकल फैराडे 1833 में सेमीकंडक्टर प्रभाव का निरीक्षण करने वाले पहले व्यक्ति थे।
फैराडे ने पाया कि सिल्वर सल्फाइड के विद्युत प्रतिरोध में तापमान में कमी आई है। 1874 में कार्ल ब्रौन ने पहले सेमीकंडक्टर डायोड प्रभाव की खोज की। 1901 में पहले सेमीकंडक्टर डिवाइस ‘कैट व्हिस्कर्स’ का पेटेंट कराया गया। इसका आविष्कार जगदीश चंद्र बोस ने किया था।
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अर्धचालक के कुछ विशेष गुण निम्न प्रकार हैं –
- अर्धचालक पदार्थ की प्रतिरोधकता कुचालक पदार्थ से अधिक और सुचालक से कम होती है.
- अर्धचालकों में प्रतिरोध का ऋणात्मक तापमान गुणांक होता है अर्थात तापमान में वृद्धि के साथ अर्धचालक का प्रतिरोध घटता है और विद्युत चालकता बढती है.
- जब एक उपयुक्त धातु की अशुद्धता अर्धचालक में डाली जाती है तो अर्धचालकों के वर्तमान गुण में बदलाव होता है. अर्थात इनकी चालकता कम या ज्यादा हो जाती है.
- जब अर्धचालक अपनी Natural State में होते हैं तो वे ख़राब सुचालक की भांति व्यवहार करते है, लेकिन कुछ तकनीकी की मदद से अर्धचालकों में धारा का प्रवाह किया जाता है. जैसे कि डोपिंग तकनीकी के द्वारा.
- अर्धचालकों की चालकता को बाहर से लगाये गए विद्युत क्षेत्र या प्रकाश के द्वारा भी परिवर्तित किया जा सकता है.
Semiconductor (अर्धचालक) के उदाहरण (Example of Semiconductor in Hindi)
कुछ प्रमुख अर्धचालक निम्न हैं –
- सिलिकॉन
- जर्मेनियम
- आर्सेनाइड
- गैलियम
बाह्य अर्धचालक भी दो प्रकार के होते हैं –
1. N Type Semiconductor
2. P Type Semiconductor
N Type Semiconductor क्या हैं
जब जर्मेनियम या सिलिकॉन में 5 संयोजकता वाले परमाणु की अशुद्धि मिलाई जाती है तो तो वह जर्मेनियम के एक परमाणु का स्थान ले लेता है.
अशुद्ध परमाणु के 5 में से 4 इलेक्ट्रान जेर्मेनियम के 4 इलेक्ट्रान के साथ एक – एक कर संयोजक बंध बना लेते हैं और 5 वां इलेक्ट्रान अशुद्ध परमाणु से अलग हो जाता है और क्रिस्टल के अन्दर मुक्त रूप से चलने लगता है. और जो यह मुक्त इलेक्ट्रान होता है यही आवेश वाहक का कार्य करता है.
इस प्रकार से शुद्ध जर्मेनियम में धातु की अशुद्धता मिलाने पर इसकी चालकता बढ़ जाती है. इस प्रकार से बने अर्धचालक को N – टाइप अर्धचालक कहते हैं. N Type Semiconductor में आवेश वाहक ऋणात्मक आवेश वाले होते हैं.
P – Type Semiconductor क्या हैं
जब जेर्मेनियम या सिलिकॉन में 3 संयोजकता वाले अशुद्ध धातु को मिलाया जाता है तो तो अशुद्ध धातु के 3 इलेक्ट्रान जेर्मेनियम के निकटतम 3 इलेक्ट्रान के एक – एक इलेक्ट्रान के साथ मिलकर संयोजक बंध बना लेते है.
जेर्मेनियम का एक इलेक्ट्रान बंध नहीं बना पाता है इसलिए वह रिक्त रह जाता है और इस रिक्त स्थान को कोटर कहते हैं. बाहर से विद्युत क्षेत्र लगाने पर कोटर का नजदीक वाला इलेक्ट्रान कोटर पर आ जाता है जिससे नजदीकी इलेक्ट्रान रिक्त हो जाता और वहां पर कोटर बन जाता है.