लक्ष्मी पूजा क्यों मनाया जाता है? 2024 लक्ष्मी पूजन सामग्री एवं विधि

क्या आप जानते हैं की दीपावली पर लक्ष्मी पूजा क्यों की जाती है? आज इस लेख में आपको लक्ष्मी पूजा क्यों मनाया जाता है, और पूजा से जुडी हुई और भी अन्य जानकारी मिलेगी, तो चलिए जानते हैं।

Diwali 2024: साल 2024 में दिवाली कब है?

वर्ष 2024 में दीपावली पूजन 12 नवंबर के दिन किया जायेगा। पंचाग के अनुसार साल 2023 में दिवाली का त्योहार 12 नवंबर, के दिन मनाया जाएगा. पांच दिवसीय त्योहार दिवाली का समापन भाई दूज के दिन होता है. और इसकी शुरुआत धनतेरस से होती है. आइए जानें पंचाग के मुताबिक तिथि और मुहूर्त. निशिता काल – 23:39 से 00:31, 13 नवंबर

लक्ष्मी पूजा क्यों मनाया जाता है?

मान्यता के अनुसार देवी मां लक्ष्मी का पूजन (Laxmi Pujan) करने से धन से जुड़ी तमाम परेशानियां दूर हो जाती हैं और मां लक्ष्मी (Laxmi Devi) की कृपा प्राप्त होती है। वहीं धार्मिक मान्यताओं के आधार पर, मां लक्ष्मी के साथ भगवान विष्णु, भगवान गणेश और भगवान कुबेर की भी पूजा करनी चाहिए।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सप्ताह में शुक्रवार का दिन लक्ष्मी पूजा (Laxmi Puja) के लिए विशेष शुभ माना जाता है। जानकारों के अनुसार ये जरूरी नहीं है कि आप लक्ष्मी पूजा (Lakshmi Puja) दीपावली के दिन ही करें। आप किसी भी शुभ दिन या शुक्रवार के दिन लक्ष्मी पूजा (Laxmi Puja) कर सकते हैं। मान्यताओं व ज्योतिषचार्यों के आधार पर Laxmi Pujan, अगर विधि अनुसार किया जाए, तो इस पूजन का फल तुरंत मिल जाता है।

वहीं कई बार लोगों को माता लक्ष्मी के पूजन (Laxmi Pujan) की विधि क्या होती है और मां को किस तरह से प्रसन्न किया जा सकता है, इसकी जानकारी नहीं होती है। इस संबंध में जानकरों के अनुसार दरअसल माता लक्ष्मी के पूजन Laxmi Pujan की विधि को कई चरणों में किया जाता है।

कालरात्रि भी कहा कहा जाता है
भारतीय कालगणना के अनुसार 14 मनुओं का समय बीतने और प्रलय होने के पश्चात् पुनर्निर्माण व नई सृष्टि का आरंभ दीपावली के दिन ही हुआ था. नवारंभ के कारण कार्तिक अमावस्या को कालरात्रि भी कहा कहा जाता है.

उत्तरार्द्ध का आरंभ होता है
इस दिन सूर्य अपनी सातवीं यानी तुला राशि में प्रवेश करता है और उत्तरार्द्ध का आरंभ होता है. इसीलिए कार्तिक मास की पहली अमावस्या ही नई शुरुआत और नव निर्माण का समय होता है.

कालरात्रि को शत्रु विनाशक माना गया है
जीविद्यार्णव तंत्र में कालरात्रि को शक्ति रात्रि की संज्ञा दी गई है. कालरात्रि को शत्रु विनाशक माना गया है साथ ही शुभत्व का प्रतीक, सुख-समृद्धि प्रदान करने वाला भी माना गया है.

मां लक्ष्मी का जन्म दिवस
धार्मिक कथाओं के अनुसार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को ही समुद्र मंथन से मां लक्ष्मी का आगमन हुआ था. एक अन्य मान्यता के अनुसार इस दिन मां लक्ष्मी का जन्म दिवस होता है. कुछ स्थानों पर इस दिन को देवी लक्ष्मी के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है.

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लक्ष्मी पूजन सामग्री- Laxmi Puja ki samagri in hindi

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लक्ष्मी व गणेश की मूर्तियाँ, लक्ष्मी सूचक सोने अथवा चाँदी का सिक्का, लक्ष्मी स्नान के लिए स्वच्छ कपड़ा, लक्ष्मी सूचक सिक्के को स्नान के बाद पोंछने के लिए एक बड़ी व दो छोटी तौलिया। बहीखाते, सिक्कों की थैली, लेखनी, काली स्याही से भरी दवात, तीन थालियाँ, एक साफ कपड़ा, धूप, अगरबत्ती, मिट्टी के बड़े व छोटे दीपक, रुई, माचिस, सरसों का तेल, शुद्ध घी, दूध, दही, शहद, शुद्ध जल।

पंचामृत (दूध, दही, शहद, घी व शुद्ध जल का मिश्रण)
मधुपर्क (दूध, दही, शहद व शुद्ध जल का मिश्रण)

हल्दी व चूने का पावडर, रोली, चन्दन का चूरा, कलावा, आधा किलो साबुत चावल, कलश, दो मीटर सफेद वस्त्र, दो मीटर लाल वस्त्र, हाथ पोंछने के लिए कपड़ा, कपूर, नारियल, गोला, मेवा, फूल, गुलाब अथवा गेंदे की माला, दुर्वा, पान के पत्ते, सुपारी, बताशे, खांड के खिलौने, मिठाई, फल, वस्त्र, साड़ी आदि, सूखा मेवा, खील, लौंग, छोटी इलायची, केसर, सिन्दूर, कुंकुम, गिलास, चम्मच, प्लेट, कड़छुल, कटोरी, तीन गोल प्लेट, द्वार पर टाँगने के लिए वन्दनवार। याद रहे लक्ष्मीजी की पूजा में चावल का प्रयोग नहीं करना चाहिए। धान की खील (पंचमेवा गतुफल सेब, केला आदि), दो कमल। लक्ष्मीजी के हवन में कमलगट्टों को घी में भिगोकर अवश्य अर्पित करना चाहिए। कमलगट्टों की माला द्वारा किए गए माँ लक्ष्मीजी के जप का विशेष महत्व बताया गया है।

लक्ष्मी पूजन की विधि- Laxmi Pujan Ki Vidhi

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चौकी पर लक्ष्मी व गणेश की मूर्तियाँ इस प्रकार रखें कि उनका मुख पूर्व या पश्चिम में रहे। लक्ष्मीजी, गणेशजी की दाहिनी ओर रहें। पूजनकर्ता मूर्तियों के सामने की तरफ बैठें। कलश को लक्ष्मीजी के पास चावलों पर रखें। नारियल को लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटें कि नारियल का अग्रभाग दिखाई देता रहे व इसे कलश पर रखें। यह कलश वरुण का प्रतीक है।

दो बड़े दीपक रखें। एक में घी भरें व दूसरे में तेल। एक दीपक चौकी के दाईं ओर रखें व दूसरा मूर्तियों के चरणों में। इसके अतिरिक्त एक दीपक गणेशजी के पास रखें। मूर्तियों वाली चौकी के सामने छोटी चौकी रखकर उस पर लाल वस्त्र बिछाएँ।

कलश की ओर एक मुट्ठी चावल से लाल वस्त्र पर नवग्रह की प्रतीक नौ ढेरियाँ बनाएँ। गणेशजी की ओर चावल की सोलह ढेरियाँ बनाएँ। ये सोलह मातृका की प्रतीक हैं। नवग्रह व षोडश मातृका के बीच स्वस्तिक का चिह्न बनाएँ। इसके बीच में सुपारी रखें व चारों कोनों पर चावल की ढेरी। सबसे ऊपर बीचोंबीच ॐ लिखें।

लक्ष्मीजी की ओर श्री का चिह्न बनाएँ। गणेशजी की ओर त्रिशूल, चावल का ढेर लगाएँ। सबसे नीचे चावल की नौ ढेरियाँ बनाएँ। इन सबके अतिरिक्त बहीखाता, कलम-दवात व सिक्कों की थैली भी रखें।

छोटी चौकी के सामने तीन थाली व जल भरकर कलश रखें। थालियों की निम्नानुसार व्यवस्था करें- 1. ग्यारह दीपक, 2. खील, बताशे, मिठाई, वस्त्र, आभूषण, चन्दन का लेप, सिन्दूर कुंकुम, सुपारी, पान, 3. फूल, दुर्वा चावल, लौंग, इलायची, केसर-कपूर, हल्दी चूने का लेप, सुगंधित पदार्थ, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक।

इन थालियों के सामने यजमान बैठे। आपके परिवार के सदस्य आपकी बाईं ओर बैठें। कोई आगंतुक हो तो वह आपके या आपके परिवार के सदस्यों के पीछे बैठे।

लक्ष्मी पूजा की संक्षिप्त विधि : 

सबसे पहले पवित्रीकरण करें।

आप हाथ में पूजा के जलपात्र से थोड़ा सा जल ले लें और अब उसे मूर्तियों के ऊपर छिड़कें। साथ में मंत्र पढ़ें। इस मंत्र और पानी को छिड़ककर आप अपने आपको पूजा की सामग्री को और अपने आसन को भी पवित्र कर लें।

मां लक्ष्मी (Lakshmi Devi) का आह्वान (Aavahan):

ॐ पवित्रः अपवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपिवा।
यः स्मरेत्‌ पुण्डरीकाक्षं व वाभ्यन्तर शुचिः॥
पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठः ग षिः सुतलं छन्दः
कूर्मोदेवता आसने विनियोगः॥

अब पृथ्वी पर जिस जगह आपने आसन बिछाया है, उस जगह को पवित्र कर लें और माँ पृथ्वी को प्रणाम करके मंत्र बोलें-

ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता।
त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्‌॥
पृथिव्यै नमः आधारशक्तये नमः

अब आचमन करें

पुष्पाञ्जलि आसन (Pushpanjali Asana):
मां का आवाहन करने के बाद आप पांच तरह के फूल मां की मूर्ति के सामने रखें और साथ ही इस मंत्र का जाप करते हुए एक-एक फूल को छोड़े।

नाना रत्‍न समायुक्‍तं, कार्त स्‍वर विभूषितम् ।
आसनं देव-देवेश ! प्रीत्‍यर्थं प्रति-गह्यताम् ।।
।। श्रीलक्ष्‍मी-देव्‍यै आसनार्थे पंच-पुष्‍पाणि समर्पयामि ।।

पुष्प, चम्मच या अंजुलि से एक बूँद पानी अपने मुँह में छोड़िए और बोलिए-
ॐ केशवाय नमः

और फिर एक बूँद पानी अपने मुँह में छोड़िए और बोलिए-
ॐ नारायणाय नमः

फिर एक तीसरी बूँद पानी की मुँह में छोड़िए और बोलिए-
ॐ वासुदेवाय नमः

फिर ॐ हृषिकेशाय नमः कहते हुए हाथों को खोलें और अंगूठे के मूल से होंठों को पोंछकर हाथों को धो लें। पुनः तिलक लगाने के बाद प्राणायाम व अंग न्यास आदि करें। आचमन करने से विद्या तत्व, आत्म तत्व और बुद्धि तत्व का शोधन हो जाता है तथा तिलक व अंगन्यास से मनुष्य पूजा के लिए पवित्र हो जाता है।

आचमन आदि के बाद आँखें बंद करके मन को स्थिर कीजिए और तीन बार गहरी साँस लीजिए। यानी प्राणायाम कीजिए क्योंकि भगवान के साकार रूप का ध्यान करने के लिए यह आवश्यक है फिर पूजा के प्रारंभ में स्वस्ति वाचन किया जाता है। उसके लिए हाथ में पुष्प, अक्षत और थोड़ा जल लेकर स्वस्तिन इंद्र वेद मंत्रों का उच्चारण करते हुए परम पिता परमात्मा को प्रणाम किया जाता है। फिर पूजा का संकल्प किया जाता है।

संकल्प : आप हाथ में अक्षत, पुष्प और जल ले लीजिए। कुछ द्रव्य भी ले लीजिए। द्रव्य का अर्थ है कुछ धन। यह सब हाथ में लेकर संकल्प मंत्र को बोलते हुए संकल्प कीजिए किमैं अमुक व्यक्ति अमुक स्थान व समय पर अमुक देवी-देवता की पूजा करने जा रहा हूं जिससे मुझे शास्त्रोक्त फल प्राप्त हो। सबसे पहले गणेश जी व गौरी का पूजन कीजिए। उसके बाद वरुण पूजा यानी कलश पूजन करना चाहिए।

हाथ में थोड़ा-सा जल ले लीजिए और आह्वाहन व पूजन मंत्र बोलिए और पूजा सामग्री चढ़ाइए।

फिर नवग्रहों का पूजन कीजिए। हाथ में अक्षत और पुष्प ले लीजिए और नवग्रह स्तोत्र बोलिए।

इसके बाद षोडश मातृकाओं का पूजन किया जाता है। हाथ में गंध, अक्षत, पुष्प ले लीजिए। सोलहमाताओं को नमस्कार कर लीजिए और पूजा सामग्री चढ़ा दीजिए।

सोलह माताओं की पूजा के बाद रक्षाबन्धन होता है।

रक्षाबंधन विधि में मौली लेकर भगवान गणपति पर चढ़ाइए और फिर अपने हाथ में बंधवा लीजिए और तिलक लगा लीजिए।

अब आनन्दचित्त से और निर्भय होकर महालक्ष्मी की पूजा प्रारंभ कीजिए।

माता लक्ष्मी (Laxmi Pujan) की आरती- Laxmi Ji Ki Aarti lyrics in Hindi


ॐ जय लक्ष्मी माता,
मैया जय लक्ष्मी माता ।
तुमको निसदिन सेवत,
हर विष्णु विधाता ॥

उमा, रमा, ब्रम्हाणी,
तुम ही जग माता ।
सूर्य चद्रंमा ध्यावत,
नारद ऋषि गाता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता…॥

दुर्गा रूप निरंजनि,
सुख-संपत्ति दाता ।
जो कोई तुमको ध्याता,
ऋद्धि-सिद्धि धन पाता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता…॥

तुम ही पाताल निवासनी,
तुम ही शुभदाता ।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशनी,
भव निधि की त्राता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता…॥

जिस घर तुम रहती हो,
ताँहि में हैं सद्‍गुण आता ।
सब सभंव हो जाता,
मन नहीं घबराता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता…॥

तुम बिन यज्ञ ना होता,
वस्त्र न कोई पाता ।
खान पान का वैभव,
सब तुमसे आता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता…॥

शुभ गुण मंदिर सुंदर,
क्षीरोदधि जाता ।
रत्न चतुर्दश तुम बिन,
कोई नहीं पाता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता…॥

महालक्ष्मी जी की आरती,
जो कोई नर गाता ।
उँर आंनद समाता,
पाप उतर जाता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता…॥

टिप्पणियां
ॐ जय लक्ष्मी माता,
मैया जय लक्ष्मी माता ।
तुमको निसदिन सेवत,
हर विष्णु विधाता ॥

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